सोमवार, 29 सितंबर 2008

मेरी उड़ीसा यात्रा भाग-३ :पुरी का सूर्योदय और वो सुबह का समुद्री स्नान

अब तक आपने पढ़ा पुरी तक पहुँचने और समुद्र के सानिध्य में बिताए पहले दिन का हाल। आज देखें मेरे साथ पुरी का सूर्योदय और आनंद उठाएँ सुबह के समुद्री स्नान का।
जैसा कि मैंने पिछली पोस्ट में जिक्र किया था मेरे मित्र की कानपुर से आने वाली ट्रेन, दस घंटे विलंबित होते होते रात के करीब दो बजे पहुँची। गेस्ट हाउस में आते ही उसे ताकीद दे दी गई थी कि भाई पुरी के समुद्र तट का आनंद लेना है तो बस तुम्हारे लिए सिर्फ सुबह का समय बचा है। सूर्योदय के साथ अगर पानी बहुत ठंडा ना हुआ तो एक डुबकी भी लगा ली जाएगी।

पर गलती ये हो गई कि इस कार्यक्रम की जानकारी गेस्ट हाउस के चौकीदार को नहीं दी गई। अगली सुबह आँखे मलते-मलते जब किसी तरह हम सवा पाँच बजे तैयार हुए तो पता चला कि हम गेस्टहाउस में क़ैद हैं। नीचे के ग्रिल पर ताला लटका था और चौकीदार पर हमारी और रूम की कर्कश कालिंग बेल की आवाज़ों का कोई असर नहीं हो रहा था। उधर दूर क्षितिज पर सूर्योदय के पहले की हल्की-हल्की लाली नज़र आने लगी थी। हम सब हाथ पर हाथ धरे कुछ देर बैठे रहे। अंत में मेरे कनिष्ठ सहकर्मी ने एक जुगत भिड़ाई। पहले मंजिले के रेलिंग से लटकते हुए वो सामने वाली छत पर पहुँचा और फिर वहाँ से करीब छः सात फीट नीचे कूद गया। इस तरह चौकीदार को जगा के ताला खोला गया और हम करीब छः सवा छः बजे तक तेज़ कदमों से भागते टहलते समुद्र तट के करीब पहुँच गए।

वहाँ पहुँचे तो देखा कि सूर्योदय तो दस मिनट पहले ही हो गया था। पर सूर्य देवता बादलों की ओट में अपनी लाली बिखेरते शायद हमारे ही आने का इंतजार कर रहे थे। हमने तुरत फुरत में उस समय की तसवीरें लीं ।


सामने के नज़ारे को देखते ही सबका मन समुद्र में गोते लगाने का हो गया। पहले दिन की अपेक्षा आज सागर पूरे जोश में था और लहरें सिर की ऊँचाई तक उठ रहीं थीं। कुछ देर तो मैं अपने कैमरे की रखवाली करता रहा पर मित्रों को पानी में मस्ती करता देख रहा नहीं गया और मैं भी उनके साथ हो लिया। समुद्र तट खाली था। हमारे सिवाए इतनी सुबह स्नान को आतुर कोई पर्यटक नहीं दिख रहा था। हाँ सुबह टहलने वाले इक्का दुक्का दिख जाते थे। हम सभी को लहरों के साथ कूद फाँद करने में बेहद मज़ा आ रहा था। ऊँची लहरों के आते ही हमारे आस पास का समुद्री फेनीय जल श्वेत आभा से चमक उठता था। आप खुद ही देखिए..


पर आज का मुहुर्त ही कुछ गड़बड़ था। नहा के वापस लौटे तो देखा कि हमारे वरीय सहयोगी अपने तौलिए की बजाए अपनी छोटी बेटी का तौलिया उठा लाए हैं। ख़ैर जैसे तैसे छुपते छुपाते हमने कपड़े बदले। दूर से दोस्त ये देख हल्ला मचा रहे थे पर उन्हें क्या पता था कि कुछ ही समय बाद उनमें से एक पर क्या विपदा आने वाली है।

हुआ यूँ कि जब समने वस्त्र बदल लिए तो मेरे मित्र को ख़्याल आया कि उसने जल्दबाजी में भीगे कपड़ों पर ही पैंट पहन ली है। सो फिर उसे भी उसी तौलिए की शरण में जाना पड़ा। अब एक झटके में जैसे ही मित्र ने अंदर के कपड़े निकाले, तौलिया जवाब दे गया। अब हमारा तो हँसते-हँसते बुरा हाल था। रास्ते भर वो हमें कोसता गया कि "सर ऍसा तौलिया लाने से अच्छा था कि कुछ ना लाते"

वापस लौट कर हमें चिलका झील की ओर निकलना था जिसका एक सिरा पुरी से करीब ५० किमी दूर है। अगली पोस्ट में आपको ले चलेंगे खुर्दा, गंजाम और पुरी जिलों में करीब ११०० वर्ग किमी तक फैली इस झील के सफ़र पर....

इस श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ
  1. सफर राँची से राउरकेला होते हुए पुरी तक का
  2. पुरी का समुद्र तट क्यूँ है इतना खास ?

11 टिप्‍पणियां:

  1. तौलि‍ये वाला प्रसंग तो बड़ा मजेदार था। आगे की यात्रा में साथ मि‍लूँगा।

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  2. क्या खूब, आप आते हैं तो बस ऐसे ही की दिल खुश हो जाता है....तस्वीरें तो दिल मोह ले गयीं..कहाँ कहाँ से लाते हैं...मन खुश हो गया...थैंक्स

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  3. शुक्रिया पुरी की सैर करवाने का । बहुत ही सुंदर फोटो और प्रसंग तो और भी मजेदार ।

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  4. गेस्ट हाउस के चौकीदार कितने imp है अब आपको आईडिया हो गया होगा !इतनी यात्रा कर चुके .....फ़िर ऐसा तौलिया ?किसी साजिश का तो हिस्सा नही ???सनसनी ......

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  5. भई अनुराग मेरी जिम्मेवारी में कैमरा लाना था, तौलिया नही। यह काम हमने अपने सीनियर को दे रखा था। इसलिए इस साजिश से मैं तो सीधे बरी हो गया क्यूँ है ना? :)

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  6. आज अचानक आपके ब्लॉग पर आना हो गया. बड़ा मजेदार है. मेरा भी एक चिट्ठा हिन्दी में है. अब तो मैने फेवरिट में डाल लिया है. आता रहूँगा.मेरा हिन्दी ब्लॉग यहाँ है: http://mallar.wordpress.com

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  7. छोटे तौलिये के मेरे अनुभव पर कल ही कुछ लिख रहा था कि आपने भी रोचक वृताँत बता दिया. बढ़िया रहा हमेशा की तरह!!

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  8. मनीष जी...आप के साथ इस सफर में शुरू से ही हूँ...लेकिन आज टिपण्णी करने से ख़ुद को रोक नहीं पाया...हँसते हँसते बुरा हाल है...सोचता हूँ जब पढ़ के ये हाल है तो वास्तव में क्या हाल हुआ होगा आप सब का...आप की भाषा और वर्णन दोनों उच्च कोटि के हैं...बहुत मजा आ रहा है...लिखते रहिये...
    नीरज

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  9. आपको ईद और नवरात्रि की बहुत बहुत मुबारकबाद

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  10. आप सबका शुक्रिया इस सफ़र में साथ बने रहने का।
    सुब्रमणियम जी इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है आते रहें।

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  11. सुर्योदय को कैद करनें की हमारी भी इच्छा है.. :)

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