गुरुवार, 19 मार्च 2009

यादें अंडमान की : रॉस द्वीप जो एक समय था अंडमान की राजधानी

इस श्रृंखला की पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि किस तरह इठलाती बालाओं और विमान के टूटते डैने के संकट से उबर कर अंडमान पहुँचा और सेल्युलर जेल में ध्वनि और प्रकाश का सम्मिलित कार्यक्रम किस तरह वहाँ के गौरवमयी इतिहास से मुझे रूबरू करा गया। अब आगे पढ़ें....


टूर आपरेटर के कार्यक्रम में पहले दिन के लिये तीन गन्तव्य स्थल मुकर्रर थे । रॉस द्वीप, कोर्बिन कोव बीच और चिड़िया टापू । हमारा समूह सबसे ज्यादा उत्साहित था, कोर्बिन कोव को लेकर क्यूंकि सुना था कि ये पोर्ट ब्लेयर की एकमात्र अच्छी बीच है । वैसे भी समुद्र में नहाने के लिए पूरी तैयारी थी हमारी ।

नौ-साढ़े नौ बजे तक हम अंडमान स्पोर्टस काम्पलेक्स (Andman Sports Complex) के अहाते में थे । सैलानियों की वहाँ जबरदस्त भीड़ थी। एक छोटी सी मोटर बोट पर रॉस द्वीप का सफर करीब 7-8 मिनटों का रहा होगा। वैसे भी रॉस एक ऐसा द्वीप है जिसके सामने का भाग पोर्ट ब्लेयर से काफी सहजता से देखा जा सकता है।


अंग्रेजों ने अंडमान पर अपने कब्जे के बाद पहली बस्ती यहीं बसाई थी । एक मेरीन सर्वेयर डैनियल रॉस (Danial Ross) के नाम पर इस द्वीप का नाम रॉस द्वीप पड़ा। पोर्ट ब्लेयर से राजधानी को यहाँ लाने का कारण पानी की किल्लत बताया जाता है। उस समय यहाँ की रौनक का अंदाजा यहाँ के संग्रहालय में मौजूद चित्रों से लगता है।
आज का रॉस अपने उन आलीशान इमारतों के भग्नावशेषों को समेटे हुए है। चाहे वो अधिकारी आवास हो या पॉवर हाउस, आफिसर्स मेस हो या बाजार, ऊपर ऊँचाई पर अवस्थित गिरिजाघर हो या नीचे का छोटा सा मंदिर....ये सब अपने वास्तविक रूपों की परछाई मात्र हैं। बिना उनकी तसवीर देखे उन्हें पहचान पाना मुश्किल क्या बिलकुल नामुमकिन है । आज जो उस समय के भवनों की दीवारें बची भी हैं तो उन पेड़ों की वजह से जिनकी जड़ों के विशाल जाल ने ढहती दीवारों की एक-एक ईंट को इस तरह समेट रखा है जैसे कोई माँ ठंड में ठिठुरते किसी बच्चे को अपनी गोद में छिपा लेती है ।
द्वितीय विश्व युद्ध के समय ये द्वीप भी जापानियों के कब्जे में आ गया था । पर उस वक्त आए भूकंप की वजह से लोग इस द्वीप से पलायन करने लगे । अब यहाँ कोई नहीं रहता । इस शांत पर बेहद खूबसूरत द्वीप को ये खंडहर ही एक जीवंतता प्रदान करते हैं। दूर से ही दिखती नारियल पेड़ों की पंक्तिबद्ध कतारें इस द्वीप की सुंदरता में चार चाँद लगाती हैं। द्वीप में घुसते ही जो इमारत दिखती है वो यहाँ के एक उद्यमी फतेह अली (Fateh Ali) को समर्पित है । इस व्यवसायी ने रॉस पर अपनी मेहनत के बल बूते पर अकूत धन इकठ्ठा किया था। पर उसकी कोई संतान नहीं थी, सो उसने अपना सारा धन एक ट्रस्ट को दे दिया। ये ट्रस्ट आज भी अंडमान के उन मेधावी छात्रों को छात्रवृति प्रदान करता है जो मेनलैंड में पढ़ रहे हैं।


थोड़ी दूर और आगे बढ़ने पर पावर हाउस और स्विमिंग पूल के अवशेष दिखते हैं। मुझे जान कर ताज्जुब हुआ कि उस समय द्वीप में पानी की आपूर्ति के लिए अंग्रेजों ने यहाँ वाटर डिस्टिलेशन प्लांट (Distilation Plant) लगाया था। ऊपर गिरिजाघर के रास्ते जाने के बजाए हमने द्वीप के किनारे- किनारे जाता हुआ पगडंडी वाला मार्ग पकड़ा । एक ओर नारियल के आड़े तिरछे वृक्षों की कतारें ओर उनके पीछे समुद्र का गहरा नीला जल एक ऐसा दृश्य उपस्थित कर रहे थे, जिससे मन मोहित हुए बिना नहीं रह सकता । पगडंडी के दूसरी तरफ पहाड़ी थी जो द्वीप के अधिकांश भू-भाग घेरे हुए है ।

पगडंडियों के ऊँचे-नीचे रास्तों पे दौड़कर बच्चे बेहद आनंदित महसूस कर रहे थे । चलते-चलते हम द्वीप के पिछले हिस्से में जा पहुँचे । जैसे ही उसकी बगल में रेत की पतली सी लकीर दिखी, बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा । आनन फानन में बच्चों ने वस्त्रों का परित्याग करके नहाना भी शुरु कर दिया । 10-15 मिनट ऐसे ही बिता कर हम द्वीप के दायें वाले हिस्से में पहुँचे जहाँ एक और beach दिखी । पर पूरे द्वीप की चढ़ती धूप में परिक्रमा कर लेने के बाद सबकी उर्जा क्षीण सी हो गई थी तो नारियलों की झुरमुट के बीच घास पर विश्राम करना ही सबने श्रेयस्कर समझा।

जिस फेरी से हमें वापस जाना था उसमें भारी भीड़ की वजह से हम वापस ना जा सके। नतीजन एक बजे लौटने के बजाए हम ढाई बजे वापस पोर्ट ब्लेयर पहुँच सके । इस वजह से चिड़िया टापू जाने के कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा । ४ बजे हम कोर्बन कोव पहुँचे । पर कोर्बन कोव हमारी आशा के अनुरूप खरी नहीं उतरी । एक तो दिन की थकावट और दूसरे समुद्र के मटमैले पानी को देख हमारी नहाने की इच्छा एकदम से खत्म हो गई। बस पानी में ऊपर ऊपर होकर वापस बालू पर आकर बैठ गए। शाम वहाँ के गाँधी पार्क (Gandhi Park) में गुजरी ।

अंडमान में बिताया दूसरा दिन यूँ बीत गया । पर समुद्र में ढ़ंग से ना नहा पाने का मुगालता सबके मन में रहा पर वो भी अगले दिन नार्थ बे में खत्म हो गया । समुद्र से इस मिलन का किस्सा सुनिएगा इस वृत्तांत के अगले हिस्से में ...

16 टिप्‍पणियां:

  1. यहाँ गया हुआ हूँ मनीष.तुम्हारी तस्वीरो ने कोई याद वापस दी जैसे ....

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  2. मनीष भई बहुत खूब । पहला भाग मैंने पढ़ा था जो बहुत ही रोचक था । चित्रों और शब्दों से ऐसा लगता है कि हम भी वहां सैर कर रहें हैं । बहुत बहुत धन्यवाद

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  3. Yatra Vritant aur Tasveeren dono hi bahut khub hai...

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  4. आपके लिखे और चित्रों ने तो यहाँ की सैर करवा दी ..बहुत रोचक शुक्रिया

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  5. सुन्दर यात्रा वृतांत...,
    सब कुछ बहुत तरीके से लिखा गया है....

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  6. मनीष जी
    बहुत ही रोचक सचित्र जानकारीपूर्ण पोस्ट प्रस्तुत की है पढ़कर अच्छा लगा.

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  7. हमेशाअ की तरह मन आनन्दित हुआ. कल सिक्किम जा रहा हूँ-आपकी वो पोस्ट याद कर रहा था.

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  8. हमारी यादें भी ताज़ा हो आईं | अब बारी है भारत की सबसे सुन्दर बीच जौली बॉय बीच की , नीला पानी , सफ़ेद चमकीली रेत , रंग-बिरंगी मछलियों साफ़ सुथरे जन्नत जैसे टापू की | जल्दी से अगली पोस्ट लिखिए |

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  9. मनीष जी... बहुत ही सुंदर लगा आप का यह लेख ओर चित्र.
    धन्यवाद

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  10. ये स्पष्ट कर दूँ कि इनमें से कुछ फोटो मित्रों और पहला वाला इंटरनेट से लिया गया है।

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  11. बेनामीमार्च 21, 2009

    बहुत रोचक लग रही है यह यात्रा ..अगली कड़ी का इन्तजार करते हैं ..अंडमान वाकई सुन्दर जगह है और आपका व्याखान करने का तरीका भी |

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  12. बेनामीमार्च 24, 2009

    वाह-२, पढ़ने में बहुत मज़ा आ रहा है और अंडमान निकोबार की यात्रा की इच्छा बलवती होती जा रही है! :)

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  13. kafee achcha laga . aapke sath ghoomne me .duniya me kafee jaghen ghoomne ka bhagya diya ishwar ne lekin apne desh kee hee kafee jaghen bakee rah gayeen hain .andman bhee unme se hai .........list me hai dekhte hain kab jana hoga......aapne utsukta to behad badha dee hai .

    bahut hee aabhar .

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  14. बहुत अच्छा लगा रॉस द्धीप के बारे में जान कर,हम भी स साल अंडमान जा कर के आए पर रॉस जाना किन्ही कारणों से रह गया

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