शनिवार, 26 मार्च 2011

अनजाने ऐतिहासिक बौद्ध स्थल - 'रत्नागिरि' : जहाँ हुई बौद्ध धर्म में तांत्रिक विचारधारा की शुरुआत... Ratnagiri Odisha

'रत्नागिरी', ये नाम आपको महाराष्ट्र के दक्षिण पश्चिम के कोंकणी इलाके में स्थित तटीय शहर की याद दिला देता होगा। पर अगर मैं ये कहूँ कि अरब सागर के तट पर स्थित इस रत्नागिरी के ठीक दूसरी तरफ भारत के पूर्वी तट से थोड़ा अंदर एक दूसरा रत्नागिरि भी है तो आपको जानकर थोड़ा विस्मय तो होगा ना ? तो आइए आपको लिये चलते हैं ओडीसा के जाजपुर जिले में स्थित इस प्राचीन बौद्ध स्थल पर।

रत्नागिरि भुवनेश्वर शहर से करीब सौ किमी दूरी पर स्थित हैं। यहाँ पहुँचने के लिए भुवनेश्वर से कटक आ कर फिर कटक - पारादीप राष्ट्रीय राजमार्ग का रुख करना पड़ता है।


बात दो साल पहले की है। सितंबर का आखिरी सप्ताह था। इस साल बारिश अपने वक़्त पर ना आकर थोड़ी देर से आई थी। 26 सितंबर की उस सुबह को जब हम भुवनेश्वर से निकले तो कटक से पारादीप वाले राजमार्ग पर पहुँचते पहुंचते हवा में हल्की सी ठंडक और नमी आ गई थी।


धान के लहलहाते खेतों के बीच हमारी गाड़ी राजमार्ग पर सरपट दौड़ लगा रही थी। कुछ ही देर में हरे भरे धान के खेतों के पीछे पहाड़ियां दिखाई देने लगी थीं। हमें यहीं से राजमार्ग 5A को छोड़कर बाँयी ओर स्थित इन पहाड़ियों की तरफ मुड़ना था।


धान के खेतों की हरियाली भले ही हम पीछे छोड़ आए थे पर पहाड़ियों भी कम हरी भरी नहीं दिख रहीं थीं। ये खूबसूरत मंजर दिल को बेहद सुकून पहुँचा रहे थे। कुछ देर और सफ़र के बाद इन दृश्यों को देखते देखते हम रत्नागिरी की पहाड़ियों के एक ऐसे शिखर पर पहुँच गए थे जो सातवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच बौद्ध धर्मावलंबियों का मुख्य धार्मिक केंद्र रहा था।



इतनी हरियाली के बीच पहाड़ी पर बौद्ध मठ के निर्माण की वज़ह बौद्ध भिक्षुओं के कठिन अनुशासनात्मक जीवन रहा होगा। किसी भी चहल पहल से दूर ये शांत और रमणीक वातावरण उन्हें ध्यान व पठन पाठन में सहायक होता होगा, ऐसा पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है। रत्नागिरी के इस बौद्ध स्थल पर खंडहरों तक पहुँचने के लिए थोड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है और सबसे पहले आपका सामना होता है इस विशाल बरगद के पेड़ से। बरगद के इन पेड़ों के अगल बगल आपको स्तूपनुमा शक्ल की जो पत्थर या इँटों की आकृतियाँ दिखाई दे रही होंगी। ये यहाँ आए श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ावे का एक रूप हैं जिन्हें अंग्रेजी में 'Votive Offerings' भी कहा जाता है।


पर बौद्ध धर्म में चढ़ावे वाली ये परंपरा शुरु से नहीं रही। सातवीं शताब्दी में रत्नागिरी बौद्ध धर्म की महायान विचारधारा का केंद्र था। हीनयान के अनुसार सतत ध्यान और अनुशासन से अपने व्यक्तित्व को पूर्णतः खो कर ही मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है। पर महायान में ये कहा गया कि मोक्ष प्रप्ति के लिए इसके आलावा बुद्ध और अन्य धर्मगुरुओं का आशीर्वाद भी जरूरी है। परंतु आठवीं और नवीं शताब्दी में तांत्रिक विचारधारा महायान में समाहित हुई। बौद्ध मतावलंबियों मं ये धारणा प्रबल हुई कि जादुई शक्तियों यानि वज्र प्राप्ति से ही मोक्ष का मार्ग आसान होता है। इस जो मिली जुली विचारधारा जन्मी उसे वज्रयान कहा गया।

तंत्रिक विचारधारा में पहली बार बुद्ध के साथ उनकी पत्नी को उनका समकक्ष नारी रूप मानकर उसकी पूजा होने लगी। इस नारी रूप को तारा का नाम दिया गया। दसवीं शताब्दी तक रत्नागिरि, तांत्रिक बौद्ध धर्म का मुख्य केंद्र बन गया और यही से इस धर्म में चढ़ावे की रिवायत शुरु हुई। बौद्ध धर्म में कालचक्रतंत्र के विकास में भी इतिहासकार रत्नागिरी का विशेष योगदान मानते हैं।

रत्नागिरि के भग्नावशेषों में बड़े स्तूपों के बीच छोटे छोटे स्तूपों को आसानी से देखा जा सकता है। पूरे परिसर में दो बौद्ध मठों के अवशेष हैं। इन परिसर की ईंट से बनी दीवारों पर एक ओर तो बुद्ध की अनेकानेक सुंदर प्रतिमाएँ बनी हैं तो दूसरी ओर मठ का नक्काशीदार द्वार है जो सहज ही अपने बारीक निर्माण से पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है।


बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाई गई चौबीस कमरों में अब कुछ की दीवारें ही बची हैं। साठ के दशक में उत्खनन के दौरान रत्नागिरी में पत्थर के आलावा कांसे और पीतल की भी मूर्तियाँ मिली हैं। प्रसिद्ध चीनी यात्रि ह्वेन शांग ने इस  इलाके में दो विशाल बौद्ध महाविद्यालय  होने की बात कही है। उनमें से एक का नाम वो 'पुष्पगिरि' बताते हैं जिसे संभवतः रत्नागिरि में होने का अनुमान है।

हम द्वार की संरचना ध्यान से देख ही रहे थे की तेज बारिश की वजह से एक विशाल बौद्ध प्रतिमा के नीचे मुझे शरण लेनी पड़ी। अधिकांश प्रतिमाओं का मुख बाद के शासकों ने कुछ हद तक क्षत विक्षत कर ही दिया है पर कुछ अभी भी अपने पुराने स्वरूप में दिख जाती हैं।



और ये है बुद्ध की सबसे विशालकाय प्रतिमा...


रत्नागिरि के बाद हमारे समूह को उदयगिरि और ललितगिरि के दो और बौद्ध केंद्रों की ओर प्रस्थान करना था। वहाँ की झाँकियों से रूबरू कराएँगे आपको इस यात्रा विवरण के अगले भाग में..

4 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तम जानकारी ! मुझे तो पता ही नहीं था कि एक दूसरा रत्नागिरि भी है।

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  2. मनीष जी आपके साथ घूमने का सबसे बड़ा फायदा ये है के मनोरंजन के साथ साथ ज्ञान भी बढ़ता है...जिस जगह की आप यात्रा करते हैं उसके बारे में विस्तार से बताते भी हैं और ये खूबी आपके ब्लॉग पर बार बार आने पर विवश करती है...

    नीरज

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  3. शुक्रिया आप सबका अपनी राय ज़ाहिर करने के लिए।

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