मंगलवार, 10 सितंबर 2013

तोक्यो दर्शन : रात्रि में तोक्यो हो जाता है कितना रंगीन ? (Night Life of Tokyo !)

तोक्यो दर्शन की पिछली कड़ी में आपने देखी शिंजुकु पश्चिम (Shinjuku West) की गगनचुंबी इमारतें। शिंजुकु पश्चिम (Shinjuku West) में तो हम शनिवार सुबह को गए थे पर उसकी पिछली शाम हमने शिंजुकु के पूर्वी भाग में गुजारी थी। शुक्रवार की शाम साढ़े पाँच बजे जब हम अपने ट्रेनिंग कार्यक्रम से लौटे तो प्रश्न उठा कि तोक्यो की ये दूसरी शाम कैसे बिताई जाए? ट्रेंनिंग हॉस्टल से जानकारी मिली कि तोक्यो की 'नाइट लाइफ' बड़ी जबरदस्त है और इसका अनुभव करने के लिए Roppongi, Shibuya और Shinjuku के इलाके में से किसी में भी जाया जा सकता है। 

तेरह लोगों का हमारा समूह  इस बात पर एकमत नहीं था कि ये वक़्त कैसे बिताया जाए? अब नाइट लाइफ के लिए रेस्त्राँ या बार में जाना तो लाजिमी था पर समूह मे एक तिहाई लोगों को मदिरा पान तक से परहेज था। इसी लिए हमारी राहें अलग हो गयीं। पीने खाने वाला समूह तोक्यो टॉवर होते हुए Roppongi की ओर बढ़ चला। बाकी के हम पाँच लोग रह गए। नाइट लाइफ में शिरक़त करने की तो नहीं पर माहौल को परखने और देखने की उत्कंठा हममें भी थी। शिंजुकु स्टेशन हमारे हॉस्टल से पास था तो मैंने सोचा क्यूँ ना अपनी शाम की शुरुआत वहीं से की जाए। 


शिंजुकु के पश्चिमी इलाके (Shinjuku West) की तुलना में शिंजुकु का पूर्वी इलाका (Shinjuku East) एक अलग ही परिदृश्य उपस्थित करता है। जहाँ पश्चिमी इलाके की चौड़ी सड़कों के चारों ओर ऊँची ऊँची इमारतों का जाल बिछा हैं वहीं शिंजुकु का पूर्वी इलाका हर तरह के बाजार को अपने में समेटे हुए हैं।  व्यस्त चौराहों पर ट्रैफिक सिग्नल के बंद होते ही चारों ओर से लोगों का हुजूम सड़क पर नज़र आता है। जापानी लोग खाने और पीने के बड़े शौकीन होते हैं। सप्ताहांत में आयोजित पार्टियाँ का पौ फटने तक चलना यहाँ कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

विंडो शापिंग करते करते हमें एक घंटे बिताने के बाद हम शिंजुकु पूर्व की मुख्य सड़कों को छोड़कर इससे जुड़ी गलियों में बढ़ चले। शिंजुकु के इस इलाके को काबुकी चो (Kabuki Cho) के नाम से जाना जाता है। वैसे जापान के परंपरागत नृत्य नाटक काबुकी से इसका कोई संबंध नहीं है। एक ज़माने में गिन्ज़ा (Ginza) के काबुकी थिएटर के जल जाने के बाद इस इलाके में थिएटर को स्थानांतरित करने का प्रस्ताव आया था। स्थानीय लोगों के विरोध से थिएटर तो यहाँ नहीं आया पर उसके बदले में आज जिस स्वरूप में ये इलाका विकसित हुआ उससे यहाँ रहने वाले खुश होंगे इसमें पर्याप्त संदेह है। आज Kabuki Cho, तोक्यो के अग्रणी 'Pleasure District' यानि रेडलाइट इलाके में जाना जाता है। 

इससे पहले कि मैं इस इलाके के बारे में कुछ और लिखूँ, ये बताना उचित रहेगा कि दक्षिण पूर्व एशिया और चीन जैसे देशों से उलट जापान ने कभी भी कनफ्यूशियस की एकल विवाह पद्धति को तरज़ीह नहीं दी। शादी से इतर संबंध बनाना वहाँ कभी अपवाद नहीं रहा। यही कारण है कि आर्थिक प्रगति के साथ ऐसे इलाके भी काफी फले फूले।  आज Roppongi, Shibuya और Shinjuku जैसे इलाकों में हजारों की संख्या में बॉर, रेस्टाँ,थिएटर,लव होटल,स्नानागार और जिस्मनुमाइश के अड्डे हैं जहाँ जापान और विदेशों से आए लोग अपना मनोरंजन करते हैं।


बाजारों में चल चल कर हम थक गए थे सो कुछ देर फुटपाथ के किनारे बैठ गए। कार्यालय से इन गलियों की ओर कदम बढ़ाते लोगों में युवा, अधेड़,पुरुष और स्त्रियाँ सभी थे। अचानक ही मैंने देखा कि एक लड़का चौराहे पर खड़ा होकर आते जाते लोगों को रोक रहा है और उन्हें अपने मोबाइल पर कुछ दिखा रहा है। कुछ लोग तो उसकी बातें अनसुनी करके आगे बढ़ गए पर कुछ उससे दो कदम बगल में हटकर पीछे खड़े हो गए। हम हैरत में थे कि वो कुछ लड़कियों को भी उसी तरह मोबाइल पर कुछ पढ़ा रहा है। समानता के इस ज़माने में कौन ग्राहक है और कौन शरीर का सौदागर ये पता करना मुश्किल था ।

थोड़ी देर में हमने वहाँ से गलियों के भीतर का माहौल देखने के लिए अपने कदम बढ़ा लिए। गलियों में ज्यादा चहल पहल नहीं थी। वैसे भी अभी शाम के सिर्फ साढ़े सात ही बजे थे। जापान में पन्द्रह दिन रह लेने के बाद हमें विश्वास था कि अपने देश की अपेक्षा हम यहाँ ज्यादा सुरक्षित हैं और शायद इसी वज़ह से हम बेधड़क उन गलियों में टहलने की हिम्मत जुटा सके। कुछ दूर आगे  बढ़ने पर हमें अपनी ओर कुछ एजेंट आते दिखे।  वैसे भी पाँच लड़कों को इस तरह गलियों में भटकता देख कोई ग्राहक ही समझेगा। लिहाजा प्रश्नों की बौछार शुरु हो गई। हम सब चुपचाप आगे बढ़ते रहे। अपने समूह  से मैंने सख्त ताकीद की थी कि कोई भी इन एजेंट्स की किसी भी बात का जवाब ना दे। पर गले में रुमाल, कान में बड़ी बड़ी बाली और खुले हाथों में टैटू लगाए एक जापानी एजेंट ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा। You want something.... के बाद वो होटल के मेनू की तरह उसके द्वारा दी जाने वाली सारी सेवाओं के नाम उनके मूल्य के साथ बताता गया।

हमारे समूह में एक बड़े हँसमुख और वाचाल इंसान थे। यूपी से ताल्लुक रखते थे और बकैती में माहिर। उन्होंने सोचा इन जापानियों से भी यूँ निबट लेगे। हमारे मना करने पर भी शुरु हो गए आलू प्याज का भाव लेने...

If I want this and  part of that how much?

जापानी एजेंट को भी जोश आ गया। उसे लगा एक ग्राहक तो पकड़ में आ ही गया। फटाफट तीस प्रतिशत छूट के साथ उसने नया रेट दे दिया। इन्होंने रेट सुना और OK बोलकर आगे बढ़ चले। अब वो एजेंट कहाँ छोड़ने वाला था। एकदम से भिड़ गया। गरजते हुए बोला -"You were just wasting my time. Don't mess with me. This is not India. " मामला गर्म होते देख हम बीच बचाव को आए। तभी वहीं घूम रहा श्रीलंका का एक एजेंट पहुँचा और बोला They are my people, leave them alone. तब तक हमारे मित्र के माथे पर पसीने की बूँदे आ गई थीं। इस सबक के बाद उनका मुँह पूरी रात आगे नहीं खुला।

तोक्यो के इस इलाके में विदेशियों से ज्यादा जापानी लोग आते हैं। इसी लिए ऐसे किसी भी अड्डे पर आपको जापानी के साथ उसका अंग्रेजी अनुवाद लिखा नहीं मिलेगा।


तोक्यो में विदेशियों में Roppongi का इलाका ज्यादा मशहूर है। हम जब शिंजुकु की गलियों का चक्कर लगा रहे थे, हमारे समूह का दूसरा हिस्सा तोक्यो टॉवर को देखने के बाद Roppongi इलाके में वक़्त बिता रहा था। रात का खाना खाने के लिए हमने भी शिंजकु से Roppongi की राह पकड़ी।


Roppongi स्टेशन पर हमारी मुलाकात भारत से आए एक युवा इंजीनियर से हुई। घूमने से ज्यादा प्राथमिकता इस समय हमें अपने पेट की क्षुधा मिटाने की थी। आरंभिक परिचय के बाद तुरंत उससे भारतीय भोजनालय का पता पूछकर हम स्टेशन से बाहर निकल आए। लगभग दो किमी पैदल चलने के बाद जब हम भारतीय रेस्त्राँ के बाहर पहुँचे तो पता लगा कि वो उस रात किसी पार्टी के लिए आरक्षित था। रेस्त्राँ के गुजराती मालिक ने ख़ेद व्यक्त करते हुए हमें अपनी दूसरी शाखा का पता दिया जो स्टेशन से  पास में ही थी। भूखे पेट उसी रास्ते से वापस जाने की क़वायद हमारे लिए अझेल थी पर दूसरा कोई विकल्प भी हमारे पास नहीं था।ख़ैर अपनी अपनी काया को लगभग घसीटते हम दूसरे भारतीय रेस्त्राँ तक पहुँचे। नॉन दाल सब्जी का काम्बो खाकर जब बाहर निकले तो रात के दस बज चुके थे।


Roppongi के चौराहे पर उस वक़्त काफी गहमागहमी थी। शिंजुकू की अपेक्षा यहाँ दलालों की संख्या कम नहीं थी पर  यहाँ के दलाल ज्यादातर नीग्रो और काफी हट्टे कट्टे थे।  बाकी सेवाएँ पुरुषों और महिलाओं के लिए वही थीं जिनका जिक्र मैं कर चुका हूँ। शिंजुकु के अनुभव के बाद वहाँ ज्यादा समय बिताना हमें अच्छा नहीं लग रहा था। वैसे भी हमारे लिए  उस वक़्त सड़क पर चलना मुश्किल था। वही कटाक्ष , वही प्रश्न सुन सुन कर हमारा दिमाग भी पक चुका था। 


अचानक ही वहाँ की एक बॉर से अपने समूह के बाकी लोगों को निकलता पाया। उनके अनुभवों से दो चार हुए। उनके अनुभवों का सार तो बस वही था कि पैसा फेको और तमाशा देखो। तोक्यो में मेट्रो की आखिरी सेवा साढ़े बारह बजे तक रहती है। अगर रात ज्यादा हो तो फिर अपने गन्तव्य तक पहुँचने के लिए टैक्सी का सहारा लेना पड़ता है जिसका किराया हजारों में होता है। हम वैसे भी चलते चलते काफी थक चुके थे। सो  Roppongi Hills के मशहूर Mori Tower को देखने के बाद  हमने वापसी की राह पकड़ी। तोक्यो में बिताई उस रात के कुछ चमकीले दृश्यों के साथ लौटूँगा इस श्रंखला की अगली कड़ी में...

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तोक्यो दर्शन (Sights of Tokyo) की सारी कड़ियाँ

10 टिप्‍पणियां:

  1. इतनी रंगीनियाँ देखने के बाद भी आप सलामती से हैं, यह जानकार ख़ुशी हुई..

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    1. भाई हमने बाहर बाहर से देखी तो सलामत रहे, पर जिन्होंने अंदर जाकर देखी वो भी सलामत ही रहे। मामला अपनी अपनी प्राथमिकता का है :)

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  2. ha ha ha ab jyada bolne ka ka dusara naam hai khud ko kahi fasana...aur agent logo ko toh aise logo ki talash hi hoti...ishi tarah ka ghatna hamre mitra ke saath delhi mai hua..100 rupye ka saman 700 mai lena pada sirf baketi ke karan..

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    1. अगर गंभीर हैं तो मोल भाव कीजिए, सिर्फ दिलजोई के लिए ऐसे लोगों से बात करना, वो भी विदेश में ..आफत को न्योता देना है। बहरहाल जैसा कि मैंने बताया इस प्रकरण के बाद उन्हें ये बात समझ आ गयी।

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  3. बहुत ही रोचक एवं दिलचस्प मनीष जी।हाँ,आप के दोस्त से कहियेगा कि फिर किसी एजेन्ट से नभिडे। Thank u Manish ji.

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  4. एजेन्टों से तो मुझे रांची में भी डर ही लगता है..

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  5. Uummeed karta hoon ranginiyan sifr camrey se hi nahin dekhi gayee

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    1. बेकार में उम्मीद लगाने से कोई फायदा नहीं बंधुवर !

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