सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

तोक्यो दर्शन : देखिए तोक्यो का सबसे पुराना बौद्ध मंदिर सेंसो जी ! (Sensoji Temple, Asakusa, Tokyo)

जापान के चालीस दिन के प्रवास में उनकी जिस सास्कृतिक परंपरा में मुझे सबसे ज्यादा भारतीयता का अक़्स दिखा वो था उनका अपने धर्म के प्रति नज़रिया। ख़ैर उनके इस नज़रिए के बारे में विस्तार से बात तब होगी जब मैं आपको उनके धार्मिक शहर क्योटो (Kyoto) की यात्रा पर ले चलूँगा। पर आज मेरा इरादा आपको तोक्यो शहर के सबसे प्राचीन और लोकप्रिय मंदिर सेंसो जी (Senso Ji)  घुमाने का है। प्राचीन इसलिए कि इस मंदिर का निर्माण आज से करीब चौदह सौ वर्ष पूर्व यानि सातवीं शताब्दी में हुआ और लोकप्रिय इसलिए कि हर साल करीब तीन करोड़ लोग इस मंदिर के दर्शन करते हैं। वैसे तोक्यो का एक और प्रसिद्ध मंदिर Meiji Shrine है जो कि एक शिंटो Shinto मंदिर है। आपके मन में एक सवाल जरूर उठ रहा होगा कि बौद्ध और शिंटो की धार्मिक आस्थाओं में क्या कोई फर्क है? इस प्रश्न का जवाब आपको मैं क्योटो के शिंटो मंदिर दिखा कर ही बता पाऊँगा। 

सेंसो जी  असाकुसा (Asakusa) स्टेशन से दस पन्द्रह मिनट के पैदल रास्ते के बाद दिखने लगता है। ये मंदिर असाकुसा में जिस जगह विद्यमान है उसके पीछे एक बड़ी दिलचस्प कथा है। 628 ई में मार्च के महिने में जब दो मछुआरे सुमिदा नदी (Sumida River) में मछली पकड़ रहे थे तब उन्हें भगवान बुद्ध (Asakusa Kannon) की मूर्ति मिली। जब इस बात की ख़बर असाकुसा गाँव के मुखिया को मिली तो उन्होंने इस मूर्ति को अपने घर में स्थापित किया और सारा जीवन इसकी सेवा में बिता दिया। कालांतर में अनके शासकों और सेनापतियों द्वारा इस मंदिर के विभिन्न द्वारों और कक्षों का निर्माण हुआ। 

 मंदिर परिसर की शुरुआत  Kaminarimon Gate यानि तूफानी द्वार से शुरु होती है। दसवीं शताब्दी में पहली बार बने इस द्वार में मंदिर के प्रहरी के रूप में वायु और तूफान के देवताओं की प्रतिमा लगाई गई थी। इस द्वार के दो सौ मीटर आगे एक और विशाल द्वार है जिसे Hozomon द्वार कहते हैं। दसवीं शताब्दी में सेनापति तायरा ने तोक्यों और उसके आस पास के इलाकों को अपने प्रभुत्व में आने के लिए यहीं प्रार्थना की थी। इस आलीशान द्वार का निर्माण उसी मनोकामना के पूर्ण होने पर किया गया।

Hozomon Gate, Senso ji Temple

मंदिर का मुख्य कक्ष यूँ तो Edo काल की देन है पर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसका एक बड़ा हिस्सा तहस नहस हो गया था। साठ के दशक में जब इसे दोबारा बनाया गया तो इसका आकार तो वही रहा पर छत लकड़ी की जगह कंक्रीट की बनी और उस पर टाइटेनियम की टाइलें लगायी गयीं।


अचरज की बात ये है कि मुख्य मंदिर में कहीं भी बोधिसत्व की मूर्ति नज़र नहीं आती है। इतिहास के पन्नों को उलटने पर पता चला कि सातवी शताब्दी में इसके निर्माण के समय बौद्ध पुजारियों को सपने में संदेश मिला कि बुद्ध की मूर्ति को लोगों की नज़रों से दूर रखना है इसलिए मूर्ति इस तरह स्थापित की गई कि उसे आगुंतक देख ना सकें। तभी से ये परंपरा चली आ रही है।
मंदिर के मुख्य कक्ष तक पहुँचने के पहले ही लोग इस विशाल पात्र में जल रहे दीपकों की आँच को अपने शरीर से लगाते हैं।


मंदिर में प्रवेश करने के पहले अपने को शुद्ध करने के लिए लोग फव्वारे से गिर रहे पानी को कलछुल जैसे पात्र से उठाते हैं और अपने हाथों को धोते है और पानी को पीते हैं। 

अगर आप ये समझते हैं कि सारे भाग्यवादियों ने सिर्फ हिंदुस्तान में डेरा डाला हुआ है तो ज़रा ठहरिए। मुख्य मंदिर के दोनों ओर जो दो अपेक्षाकृत छोटी इमारते दिख रही हैं वहाँ  रखी लकड़ी की आलमारियों की दराजें आपका भाग्य बताने के लिए तैयार हैं। थोड़ी राशि दान में खर्च कीजिए और फिर एक दराज खींचिए। उसमें से एक क़ाग़ज का टुकड़ा निकलेगा जो आपके आने वाले दिनों की भविष्यवाणी करेगा। युवा जापानियों को मैंने कई बार इसका इस्तेमाल करते हुए देखा।

मुख्य मंदिर से Hozomon द्वार के आगे जाने पर यहाँ का प्रसिद्ध बाजार Nakamise Shopping Street शुरु होता है। दो सौ मीटर लंबाई में फैला ये बाजार सेंसो जी जितना पुराना तो नहीं पर पहली बार ये इस रूप में यहाँ अठारहवीं शताब्दी में पदार्पित हुआ था। जापान से अपने नाते रिश्तेदारों के लिए कुछ लेना हो तो ये उसके लिए अच्छी जगह है। मोल भाव करने पर बीस से तीस फीसदी दाम कम भी हो जाते हैं।

मंदिर प्रागण में स्थित ये पाँच मंजिला पैगोडा मंदिर की भव्यता को बढ़ाता है। दसवीं शताब्दी में बनने के बाद आग लगने की वज़ह से कई बार ये  क्षतिग्रस्त हुआ । बुद्ध से जुड़े धर्मग्रंथ इसकी सबसे ऊपरी मंजिल पर रखे गए हैं।


करीब एक घंटे मादिर प्रांगण में बिताने के बाद जब हम बाहर निकले तो शाम हो चुकी थी और मंदिर के कपाट भी बंद हो चुके थे।


इस मंदिर यात्रा से आपको क्या ऐसा नहीं लगा कि जापानी संस्कृति का ये हिस्सा हमारे तौर तरीकों से कितना मिलता है? जब मैं शिंटो पद्धति से जीवन जीने के बारे में आपको बताऊँगा तो आपको ये समानता और स्पष्ट होगी। जब तक ये प्रविष्टि आपके सामने होगी मैं थाइलैंड के समुद्री तटों की यात्रा पर रहूँगा। लौट कर इस श्रंखला को जारी रखते हुए आपको बताऊँगा कि तोक्यो घूमने के लिए क्यूँ जरूरी है यहाँ के रेल तंत्र को समझना?

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10 टिप्‍पणियां:

  1. दराज खींचने पर जो कागज का टुकड़ा निकला, उसमें आपके लिये क्या लिखा था?! :-)

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    1. ज्ञानदत्त जी मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसी भविष्यवाणियों को अहमियत कम देता हूँ इसलिए मैंने इन लकड़ी के बक्सों के ज़रिए अपना भाग्य टतोलने की कोशिश नहीं की। हाँ कुछ जापानियों से बात चीत के दौरान इसमें से निकलनेवाली भविष्यवाणियों की चर्चा हुई और उनमें वही विषय समाहित थे जैसे भारत में होते हैं।

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    2. 'टतोलने' को 'टटोलने' पढ़ा जाए :)

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  2. जापान भ्रमण के दौरान क्या आपको 'होतेई' और 'दारूमा' का कुछ सुराग मिला..??

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    1. दारुमा से अगर आपका मतलब जापान में बिकने वाली भाग्यशाली गुड़ियाओं से है तो इसे मैंने कई दुकानों पर बिकते देखा पर इसके पीछे की मान्यताओं पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई।
      होतेयी शब्द से फिलहाल अनिभिज्ञ हूँ इसलिए उसके बारे मैं आपके किसी सवाल का जवाब दे पाने में असमर्थ हूँ।

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    2. आपनें बिलकुल सही जाना, दारुमा दरअसल एक जापानी बोद्ध भिक्षुणी थी..
      'होतेई' को हम भारतीय लाफिंग बुद्धा के नाम से जानते है..

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    3. अच्छा तो होतेई के साथ मैंने कोबे में एक तसवीर खिंचाई।:)

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  3. जापान हो या भारत सभी जगह अंधविश्वास,पगातिशीलता,दोनों मिलती है हा राष्ट्र बादी वह हमसे ज्यादा है

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  4. कलात्मक और सौन्दर्यपूर्ण स्थापत्य

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